जिस धर्म पर शंका उठाने के अपराध में मौत का फतवा लागू हो जाए, उसे धर्म मान लेना कहाँ तक उचित है? वह धर्म ही कहाँ रहा जो तर्क की कसौटी पर खरा न उतरे? मत, पंथ संप्रदाय या मजहब भी यदि अंधश्रद्धा पर आधारित हों तो ज्ञान के अभाव में उनके अनुयायी भी क्या अधे नहीं रह जाएंगे? जो घट घट में समा रहा हो, वह गिने-चुने मंदिरों में जा टिकेगा तो सर्वदेशी और सर्वव्यापक कैसे कहलाएगा? जो निराकार है, उसकी प्रतिमा कोई
कैसे बनाएगा? ऐसे पचासों प्रश्न हैं जिनके उतर हर कोई चाहता है।
प्रस्तुत पुस्तक ‘शंका-समाधान’ ऐसी सभी शंकाओं के समाधान प्रस्तुत करती है। जिस सरल ढंग से विद्वान् लेखक ने प्रश्नोत्तर शैली में जटिल और गूढ़ विषयों को भी रोचकता से स्पष्ट किया है, उसके लिए आप भी उन्हें बधाई और प्रशंसा देंगे।
सैकड़ों प्रमाणों, ऋषि-मुनियों के कथनों, आप्त पुरुषों के विवेचनों और धर्मग्रन्थों की साक्षियों से गम्फित यह रचना स्वयं भी पढ़े, दूसरों को भी पढ़ाएँ ।
Reviews
There are no reviews yet.