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शिवमहापुराणम्

Shivamahapuranam (5 vol.)

7,000.00

By : एस. एन. खण्डेलवाल (श्री नाथ खण्डेलवाल )
Subject : puran
Edition : 2019
Publishing Year : 2019
ISBN : 9788121803830,9788121803847
Packing : 5 vol.
Pages : 3887
Dimensions : 30X20X20
Weight : 7420
Binding : Hardcover
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शिवपुराण एक महापुराण तथा शैव परम्परा का एक मूर्द्धन्य ग्रन्थ है। जिसके प्रणेता महर्षि वेदव्यास हैं। भगवान् ब्रह्मा से ही व्यास परम्परा सदा अनवरत चली आ रही है। शिवपुराण प्रणेता कृष्णद्वैपायन २८वें व्यास हैं। सम्भवतः वे अन्तिम व्यास प्रतीत होते हैं। व्यास परम्परा में महर्षि वाल्मीकि २४वें, कृष्ण द्वैपायन व्यास के पिता पराशर २६वें, ऋषि जातुकर्ण्य २७वें व्यास कहे गये हैं। यह शिवपुराण महाभारत की तरह चरित प्रधान नहीं है। यह जिज्ञासुगण के काम्य विषयों का सन्धान देने वाला धर्मशास्त्र है।

इस पुराण में प्रतिपादित भगवान् शिव नित्य आनन्द स्वरूप हैं। शिवपद का अक्षरात्मक निर्वचन ‘शं’ सनातन आनन्द का उद्भासक है। ‘इ’ कार उसका शक्ति रूप है। ‘व’ अमृत शक्ति का बीज है। तभी शिवभक्त ‘शिव’ न कह कर इस अमृत बीज वं का उच्चार करता है। यही वं त्रोटकनाद क्रम से वम् किंवा बम् हो जाता है। यह नाद ही शिव का गोत्र है। नारद इसी गोत्ररूपी नाद का स्ववीणा पर गायन करते हैं। ये प्रभु आकाशरूपी वस्त्र से आवेष्ठित होने के कारण दिगम्बर हैं। मस्तक पर परम तृप्तिकर मन्दाकिनी जल से शोभित तथा बाहुओं में लिपटे सपों से भूषित हैं। इन ‘शं’ कल्याणप्रद शंकर का हम भजन करें।

(महाकवि जगद्धरभट्ट की उक्ति)

यह परम विश्व सर्वत्र छन्दोगति की लयबद्धता के साथ स्थित है। यह लय ही जगत् का साम है। प्रभु महेश्वर के ताण्डव में यह लयताल सर्वत्र द्योतित होता रहता है। सामतत्व का चाक्षुष रूप ही परम शिव सम्बन्धित ताण्डव नृत्य है। यह सप्त भेदात्मक है। यथा-कालिका ताण्डव, गौरी ताण्डव, सन्ध्या ताण्डव, संहार ताण्डव, त्रिपुर ताण्डव, ऊर्ध्व ताण्डव तथा आनन्द ताण्डव । आनन्द ताण्डव पंचरूपात्मक है। यथा-सृष्टि-स्थिति-लय-तिरोधान अनुग्रह। परम शिव का ताण्डव नृत्य अधिब्रह्माण्डीय परिसीमा का साकार रूप है। यह सृष्टि के सम्पूर्ण तात्पर्य को भावमुद्रा में व्यक्त कर देता है।

कण्ठेन लम्बयेद्गीतं हस्तेनार्थं प्रदर्शयेत्। चक्षुर्ष्या दर्शयेद्भावं पादाभ्यां तालमाचरेत्।।

(अभिनय दर्पण)

शिव ताण्डव में समग्र सृष्टि का भेद अन्तर्निहित है। सुधीजन उसमें तल्लीन होकर इस अन्तर्निहित भेद का साक्षात्कार कर लेते हैं। यही शिवतत्व का साकार रूप है। जब व्यक्ति को यह दृष्टि मिल जाती है, तब वह समग्र विश्व का रहस्य हस्तामलकवत् प्रत्यक्ष करता है। अधिसूत्रात्मक सूक्ष्म जगत् का तथा परम बृहद् गगनगंगा समूह का चक्रवाल भी अपना रहस्य उसके समक्ष व्यक्त कर देता है। यह परम व्योम में व्याप्त स्पन्दमान शिवनृत्य तो मूर्त शिव वैभव ही है। ऐसे शिव की कृपा से ही मुझे शिवपुराण की तीन अलभ्य संहिताओं यथा-ज्ञान संहिता, सनत् कुमार संहिता तथा धर्म संहिता की प्राप्ति हो सकी। अतः प्रचलित शिवपुराण के पहले दो खण्डों में इन तीन संहिताओं का प्रकाशन किया जा रहा है।

शिवलिङ्ग दो प्रकार के होते हैं- कृत्रिम एवं अकृत्रिम (असर्जित), सम्पूर्ण प्राकृतिक उपायों से विनिर्मित स्वयम्भुलिङ्ग जैसे बाणलिङ्ग आदि को अकृत्रिम लिङ्ग कहा जाता है तथा मनुष्य के द्वारा घातु, प्रस्तर इत्यादि से निर्मित लिङ्ग को कृत्रिम लिङ्ग कहा जाता है।

ये कृत्रिम तथा अकृत्रिम लिङ्ग भी दो प्रकार के होते हैं-चल और अचल। जिस लिङ्ग को आवश्यकतानुसार स्थानान्तरित किया जा सकता है, उसे चल अथवा सचल लिङ्ग कहते हैं तथा जिस लिङ्ग को प्रयोजन होने पर भी स्थानान्तरित नहीं किया जा सकता, उसे अचल लिङ्ग कहा जाता है। आम तौर पर मन्दिरों में प्रतिष्ठित कृत्रिम शिवलिङ्गों को भी अचल लिङ्ग कहा जाता है।

अकृत्रिम अथवा प्राकृतिक लिङ्ग

अकृत्रिम शिवलिङ्ग पाँच प्रकार के होते हैं, जैसे- (१) स्वयम्भु लिंग, (२) दैव लिंग, (३) गोल लिङ्ग, (४) आर्य लिङ्ग, (५) मानस लिङ्ग।

स्वयम्भु लिङ्ग के लक्षण-जो प्राकृतिक अथवा असर्जित लिङ्ग अनेक छिद्रों से युक्त, अनेक वर्ण विशिष्ट एवं खुरदुरे होते हैं। ये लिङ्ग जमीन में गड़े हुए होते हैं, जिनका आधार देखना संभव नहीं है। ऐसे लिङ्ग को स्वयम्भु लिङ्ग कहते हैं।

स्वयम्भु लिङ्ग में यदि ये लक्षण न हों तो उसे लक्षणच्युत कहते हैं। स्वयम्भु लिङ्ग में विभिन्न प्रकार के भेद पाये जाते हैं।

वैष्णव लिङ्ग-जिस स्वयम्भु लिङ्ग का शिरोभाग (मस्तक) शंख के समान होता है, उसे वैष्णव लिङ्ग कहते हैं।

ब्रह्य लिङ्ग-जिस स्वयम्भु लिङ्ग का शिरोभाग (मस्तक) कमल की तरह होता है, वह ब्रह्मलिङ्ग है।

ऐन्द्र लिङ्ग-जिस स्वयम्भु लिङ्ग का ऊर्ध्व भाग छाते की तरह होता है, उसे ऐन्द्र लिङ्ग कहा जाता है।

आग्नेय लिङ्ग-जिस स्वयम्भु लिङ्ग में दो ऊर्ध्व भाग होते हैं, वह आग्नेय लिङ्ग है।

याम्य लिङ्ग-जिस स्वयम्भु लिङ्ग में तीन पदचिह्न दिखाई दें, उसे याम्य लिङ्ग कहते हैं।

नैर्ऋत लिङ्ग-जिस स्वयम्भु लिङ्ग की आकृति खड्ग की तरह हो, उसे नैऋत लिङ्ग कहते हैं। वारुण लिङ्ग-जिस स्वयम्भु लिङ्ग की आकृति कलश की तरह हो, उसे वारुण लिङ्ग कहा

जाता है।

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