भूमिका
‘गै’ शब्दे धातु में ‘क्त’ प्रत्यय लगकर गीत शब्द बनता है जिसका अर्थ है गाया हुआ। ‘गै + क्त= गीत’ और गीत में ‘टापू’ प्रत्यय लगने से गीता शब्द बनता है, जिसका अर्थ है, संस्कृत में लिखे पद्यमय धार्मिक ग्रन्थ जैसे शिवगीता, रामगीता, भगवद्गीता इत्यादि । भगवद्गीता के १८ अध्याय व्यास मुनि कृत महाभारत के भीष्म पर्व में संस्कृत पद्य में लिखे २३ से ४० तक के अध्याय हैं, जो कि संगीत शैली में गायन योग्य हैं। आज से लगभग सवा पाँच हजार वर्ष पूर्व पराशर ऋषि के पुत्र व्यास मुनि को माता सत्यवती ने जन्म देते ही पानी में बहा दिया था। एक द्वीप पर तपस्या – रत तपस्वियों ने बहते बालक को पानी से निकाल कर उसका पालन-पोषण किया। क्योंकि यह बालक एक द्वीप पर मिला था और बालक का रंग काला था अतः इनका नाम कृष्णद्वैपायन पड़ा। अल्पायु में ही ( करीब ११ वर्ष के) इन्होंने चारों वेद ऋषियों से अध्ययन करके ऋषि-परंपरा से मुँह-जबानी याद कर लिए थे और अष्टांग योग से समाधि प्राप्त कर ब्रह्मलीन हो गए थे। उस समय तक वेद लिखे नहीं गए थे अपितु गुरु परम्परा से सुन कर मुँह-जबानी याद किए जाते थे। व्यास मुनि ने सर्वप्रथम पृथिवी पर चारों वेदों को भोजपत्र पर लोक कल्याण के लिए अलग-अलग करके लिखा । ‘व्यासः’ ( वि + अस्+घञ्) जिसका अर्थ है विभाजन, अलग-अलग करना। क्योंकि चारों वेद एक ही ज्ञान के रूप में मुँह-जुबानी सबको याद थे और कृष्ण द्वैपायन ने चारों वेदों का व्यास ( अगल-अलग ) करके उन्हें ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद के रूप में लिख दिया जिस कारण इनका नाम व्यास मुनि पड़ा। १६वीं शताब्दी में जब छापेखाने (प्रिन्टींग प्रैस ) का युग प्रारम्भ हुआ तब चारों वेद पुस्तक के रूप में छपकर तैयार हुए। व्यास मुनि रचित भगवद्गीता के रूप में यह महान आध्यात्मिक ग्रंथ आज विश्व प्रसिद्ध है। व्यास मुनि जी ने यह श्लोक इस प्रकार रचे कि पाण्डवों एवं कौरवों की सेना के बीच में अर्जुन का रथ खड़ा है और श्री कृष्ण मोह-ग्रस्त योद्धा अर्जुन को कर्म, उपासना एवं ज्ञान काण्ड का अति सुन्दर उपदेश देकर उसे धर्म युद्ध करने की प्रेरणा दे रहे हैं।
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