श्रीगणेशाय नमः
श्रीमद्भगवद्गीता (सानुवादशङ्करानन्दीव्याख्यासहित)
प्रथम अध्याय
सत्यं ज्ञानमनन्तं यनिष्कलं निष्क्रियं परम् । अद्वितीयं निर्विशेषं ब्रह्म तत्समुपास्महे ॥11 जो परब्रह्म सत्य', ज्ञानस्वरूप, अनन्त, निष्कल', निर्षिक्रय', अद्वितीय और निविशेष हैं, उसका करते हैं।।1।।
हम ध्यान अधस्तान्मानवं दिव्यमुपरिष्टाद् गजाकृति | परस्तात्तमसस्तेजः पुरस्तादस्तु नः सदा || 2 || जिनका सिर से नीचे का कलेवर दिव्य मानवरूप है, ऊपर का भाग (सिर) हाथी की सी आकृतिवाला है, जो तमसे पर हैं और तेजरूप हैं, (वे श्रीगणेश जी ) सर्वदा हमारे सहाय हों ||2|| · पञ्चाशद्वर्णरूपेण यया व्याप्तमिदं जगत् । शब्दब्रह्ममयीं वाणीं भजे तां परदेवताम् ॥ 3 ॥ जिसने पचास वर्णों के स्वरूप से (मातृकाक्षरों के रूप से) इस जगत् को व्याप्त कर रक्खा है, उस शब्दब्रह्ममयी वाणीरूप देवता का मैं भजन करता हूँ | 3 ||
असंस्पृश्य प्रकृतिं विकृतिं च गुणैः सह ।
यः सदा भाति मेऽन्तस्थस्तं सेवे कृष्णमीश्वरम् ॥4॥
गुणों सहित प्रकृति और विकृति को छुए बिना ही जो सदा मेरे भीतर भासता है, उस परमात्मस्वरूप श्रीकृष्ण का मैं भजन करता हूँ ॥ 4 ॥
सनत्कुमार च सनत्सुजातम् । श्रीवामदेवं च शुकं महान्तं नमामि भक्त्या निजबोधसिद्धै ॥5॥ " ब्रह्मा के मानस पुत्र श्रीसनन्दन, श्रीसनक, श्रीसनातन, श्रीसनत्कुमार को श्रीवामदेव और महापुरुष श्रीशुकदेव को अपने बोध की सिद्धि के लिए मैं भक्ति से नमस्कार करता हूँ। | 5 || भक्त्या श्रीशङ्कराचार्य तच्छास्त्रं सद्गुरुं मुहुः ।
सनन्दनं श्रीसनकं सनातनं
नमामि शिरसानित्यं सम्यग्ज्ञानोपपत्तये ॥ 6 ॥
सद्गुरु श्रीशङ्कराचार्य को और उनके शास्त्र को सम्यक् ज्ञान की सिद्धि के लिए भक्तिपूर्वक नित्य सिर से बार-बार नमस्कार करता हूँ | 6 ||
भक्त्या प्रणम्य स्वगुरुमानन्दात्मसरस्वतीम् ।
क्रियते श्रीमद्भगवद्गीतातात्पर्यबोधिनी ॥ 7 ॥ अपने गुरु आनन्दात्मसरस्वती को भक्ति से नमस्कार करके मैं श्रीमद्भगवद्गीता की तात्पर्यबोधिनी टीका करता हूँ।।7।।
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