पिछले कई वर्षोंसे आपके परम त्रिय महाग्रन्थ ‘श्रीदेवीभागवत भा० टी०’ के प्रकाशनको कामना थी। अनेक बार अपनी यह साथ पूरी करनेके लिए आगे बढ़ा, किन्तु किसी न किसी कारणवश रुक जाना पड़ा। कमी कोई घरेलू समस्या आड़े आयी तो कभी किसी अन्य ग्रन्थने बीचमें कूदकर बरबस मुझसे अपना प्रकाशन करा लिया। कभी किसी मित्रने इस ग्रन्थके प्रकाशनके प्रति हतोत्साह किया तो कभी स्टाफके किसी ग्रन्थने सहसा चुककर मेरा ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लिया। इस प्रकार वर्षों यह आँखमिचौनोका खेल चलता रहा। किन्तु यह काम न होनेकी कसक बराबर बनी रही। गत वर्ष तो इसके लिए हृदयमें इतनी विकट टीस उठी कि मैं भागकर आपके परम धाम ज्वालामुखी और काँगड़ेकी भगवती बजे श्वरी देवीकी चरणशरणमें जा पहुँचा। दोनों धामोंमें इस ग्रन्थका पारायण करके गद्भद कण्ठसे चीख उठा- ‘माता! क्या कारण है कि अनायास अनेकानेक महाग्रन्थोंका प्रकाशन करके भी मैं इस पुनीत महापुराणके प्रकाशनमें क्यों नहीं सफल हो पा रहा हैं? क्या मैं इसके अयोग्य हूँ? जब भगवान् श्रीकृष्णके लीलामय महापुराण श्रीमद्भागवत तथा भगवान् रामके पुनीत इतिहाससे ओत-प्रोत ‘श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण’ एवं ‘आनन्दरामायण’ में कोई अड़चन नहीं पड़ी, तब ‘श्रीदेवीमागवत भा० टी०’ के ही प्रकाशनमें बार-बार क्यों बाधा पड़ रही है ? क्या मुझसे कोई बहुत बड़ी चूक हो गयी है ? या कोई पूर्वजन्मका दुष्कृत चाधक बना हुआ है? कुछ भी हो, यदि आप मुझपर दाहिन-दयाल हो जायँ तो मेरे सभी अपराध और सारी बाधायें दूर हो जाएँ और मैं चटपट अपनी चाइ पूर्ण कर लें। महिमामयी माँ ! क्यों नहीं मेरे ऊपर तनिक कृपालु हो जातीं? मेरी भूलों और मेरे अपराधीको आप कहाँतक गिनेंगी? वे तो अनन्त हैं। आप मेरे गुनाहोंकी ओर न निहारकर अपने मातृत्वको ओर निहारिए – ‘कुपुत्रो जायेत कचिदपि कुमाता न सवति ।’ में आँखें मूंदकर अधुविजडित कण्ठ द्वारा भगवती बजे श्वरीसे ऐसा मनुहार कर ही रहा था कि श्वेतवखधारिणी एक सप्तवर्षीया बालिका मेरे सम्मुख आ खड़ी हुई और कहने लगी-‘बाबा ! बड़ी भूख लगी है। कुछ खिलाइए ।’ उसकी मधुर ध्वनि सुनते ही आँखें खुल गयीं। उस बालिकाको देखकर ऐसा मान हुआ कि जैसे जगदम्बाने मेरी अर्जी स्वीकार कर लो और मेरी आन्तरिक प्रार्थनापर रीढ़ाकर वे स्वयं मेरे सम्मुख आ उपस्थित हुई हैं। बालिकासे मैंने कहा-‘देवी! ठहरो, अभी खिलाता हैं।’ यह कहकर में अपनी पोथी समेटने लगा। लेकिन यह क्या, पोथी बाँधकर जब निगाह ऊपर उठायी तो एककी जगह समान वय और एकजैसी बेष-भूषासे सम्पन्न नौ बालिकायें मेरी ओर एकटक निहारती दीखीं। यह देखकर मन बाँसों उछल पड़ा कि ध्रुझपर असन्न होकर नवों दुर्गायें सम्मुख आ खड़ी हुई हैं। तत्काल मैंने पास ही बैठे हुए एक किशोर बालकको भेजकर गरम-गरम जलेबी और दूध मँगवाया । तत्पथात् उस बालकके साथ नों कुमारियोंका गन्ध-पुष्पाक्षतसे पूजन करके दूध-जलेबी खिलायी और भोजनोपरान्त दक्षिणा देकर उन्हें विदा किया।
Free Shipping Above ₹1500 On All Books |
Minimum ₹500 Off On Shopping Above ₹10,000 |
Minimum ₹2500 Off On Shopping Above ₹25,000 |
Free Shipping Above ₹1500 On All Books |
Minimum ₹500 Off On Shopping Above ₹10,000 |
Minimum ₹2500 Off On Shopping Above ₹25,000 |
Shrimaddevi Bhagavatam
श्रीमद्देवी भागवतम्
Shrimaddevi Bhagavatam
₹1,250.00
By : Pandit Ramtej Pandey
Subject : puran
Edition : 2023
Publishing Year : 2023
ISBN : 9788170840190
Packing : Hard Cover
Pages : 1710
Dimensions : 20X25X8
Weight : 3118
Binding : Hard Cover
Reviews
There are no reviews yet.