पुस्तक का नाम – शुद्ध रामायण
लेखक का नाम – आचार्य प्रेमभिक्षु
रामायण मात्र कोई काव्य ग्रंथ ही नही बल्कि भारत का एक ऐतिहासिक ग्रंथ भी है। इसके रचेयता महर्षि वाल्मीकि है। इस ग्रंथ में अयोध्या के राजा राम का और उनके वंशजों का ऐतिहासिक विवरण है। समय – समय पर इस ग्रंथ में अनेकों प्रक्षेप भी जुडते रहे हैं। इन प्रक्षेपों के कारण इन ग्रंथ के कई ऐतिहासिक तथ्य भी लुप्त हो गये है। प्रक्षेपों की भरमार होने के कारण इस ग्रंथ का मूल भाग कौनसा है और कौनसा भाग क्षेपक है ये जानना अत्यन्त कठिन हो जाता है। रामायण के महत्त्व के कारण इस ग्रंथ के आधार पर अनेकों भाषाओं में अनेकों ग्रंथ बन गये। जिनमें अवधि भाषा में रामचरित्रमानस अत्यन्त प्रसिद्ध है। इस ग्रंथ की काव्यात्मक शैली के कारण ये जनमानस में अधिक लोकप्रिय हो गई है किन्तु इसमें कई बातें मूल रामायण के विपरीत और वेद विरुद्ध भी है।
प्रस्तुत पुस्तक शुद्ध रामायण भी रामचरित्रमानस के आधार पर काव्यात्मक शैली है, किन्तु इसमें रामचरित्रमानस की तरह प्रकृति और वेद विरुद्ध दोहों को स्थान नही दिया गया है। इस ग्रंथ के आरम्भ में मूल वाल्मीकि रामायण में प्रक्षेपों पर भी विचार प्रस्तुत किया गया है। रामायण के काल, महर्षि वाल्मीकि, जटायु की जाति आदि बातों की भी समीक्षा प्रस्तुत की गई है। इस शुद्ध रामायण से पाठकों को निम्न संदेश प्राप्त हो सकते हैं –
1 श्री राम एक ऐतिहासिक पुरुष है और महापुरुषों की चरित्र की पूजा करनी चाहिये।
2 वैदिक वर्ण व्यवस्था का आचरण ही विश्व शांती का मूल है।
3 वैदिक संस्कृति ही एकमात्र विश्व संस्कृति है।
4 शुद्ध राष्ट्रवाद मानवता का पोषक है।
5 यज्ञ भावना विश्वचक्र की नाभि है।
6 आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः।
आशा है कि रामायण प्रेमी पाठकों तथा इतिहास में रुचि रखने वाले पाठक अवश्य ही इस ग्रंथ से लाभान्वित होंगे।
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