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वनस्पति विज्ञान एवं भारतीय ज्योतिषशास्त्र

Vanaspati Vigyan Evm Bhartiya Jyotish Shastra

450.00

Subject : About Botany and Indian Astronomy 
Edition : 2009
Publishing Year : 2009
SKU # : 36914-PP00-0E
ISBN : 9788190795852
Packing : Hardcover
Pages : 227
Dimensions : 20X25X4
Weight : 573
Binding : Hard Cover
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हमारे चारों ओर स्थित दृश्यमान प्रकृति की अनुपम छटा में पृथ्वी के आभूषणस्वरूप वनस्पति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मूल, पुष्प, पत्र, फल तथा औषध आदि अनेक उपहारों को प्रदानकर हमें उपकृत करने वाली वनस्पतियाँ मानव जीवन का अद्भुत अंग हैं। वनस्पति शब्द का श्रवण करते ही हमारे समक्ष पेड़-पौधों की ही आकृति उभर कर आती है। यही कारण है कि अथर्ववेद के १८.१.१७ मंत्र- “आपो वाता ओषधयः” में भी स्पष्टतः वनस्पतियों के महत्त्व को उद्घोषित किया गया है। भारतीय ज्ञान की परम्परा में वनस्पति-विषयक अध्ययन की पर्याप्त सामग्री प्राप्त होती है, जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि वैदिक वाङ्गय ही इस वैज्ञानिक विषय का उत्पत्ति-स्थल है। किन्तु वनस्पतिविज्ञान का भारतीय ज्योतिषशास्त्र, आयुर्विज्ञान एवं वास्तुविज्ञान के साथ अध्ययन करना निश्चितरूप से एक आकर्षण का विषय है। यद्यपि जनसामान्य आज इस अवधारणा से भ्रमित है कि वनस्पति-विज्ञान मात्र वनस्पति-जगत् का ही वैज्ञानिक मापदण्डों पर अध्ययन प्रस्तुत करता है, किन्तु विज्ञान की यह शाखा वैज्ञानिक विषयों तक ही सीमित नहीं है, अपितु यह तो मानव जीवन के समस्त पक्षों से घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध है। इन्हीं तथ्यों को प्रस्तुत करने के उद्देश्य से ही इस विषय की ओर मेरा ध्यान केन्द्रित हुआ। इस पुस्तक में वनस्पति जगत् का वैज्ञानिक अध्ययन भारतीय वाङ्गय की दृष्टि के साथ प्रस्तुत किया गया है, इसके साथ ही ज्योतिषशास्त्र, वास्तुविज्ञान एवं आयुर्वेद में वनस्पतियाँ किस प्रकार महत्त्वपूर्ण तथा आधारस्वरूप हैं और उनका हमारे जीवन में भोजन से लेकर सौन्दर्य प्रसाधनों तक किस प्रकार वर्चस्व स्थापित है, आदि विषयों को वर्णित किया गया है।

प्रस्तुत पुस्तक चार अध्यायों में विभक्त है। प्रथम अध्याय के अन्तर्गत वनस्पति विज्ञान का अर्थ, प्रभाग, भेद- प्रभेद, नामकरण, पारिस्थितिकी आदि विषयों का प्रतिपादन किया गया है। द्वितीय अध्याय में भारतीय ज्योतिष के संक्षिप्त उल्लेखोपरान्त वनस्पति सदृश वैज्ञानिक विषय को इस शास्त्र से सुसम्बद्ध प्रदर्शित किया गया है। तृतीय अध्याय में आयुर्वेद का अर्थ, प्रयोजन, आयुर्वेद के अङ्ग, वनस्पति एवं आयुर्वेद का साहचर्य किस प्रकार है, आदि विषयों का वर्णन किया गया है। अन्तिम चतुर्थ अध्याय के अन्तर्गत वास्तुशास्त्र को वनस्पति जगत् से जोड़कर वर्णित किया गया है।

शोध प्रबन्ध को पुस्तक रूप में प्रस्तुत करते हुए सर्वप्रथम पूजनीय दादी माँ श्रीमती सावित्री मित्तल को हृदयशः मन करती हूँ जिनके आशीर्वचनों एवं स्नेह से मैं इस कार्य को शीघ्रता से सम्पन्न कर सकी। प्रातः स्मरणीय माता जी एवं पिता जी के चरणों में हृदय से प्रणाम करती हूँ जिनके आशीर्वाद एवं वात्सल्यपूर्ण सहयोग से यह कार्य पूर्ण हुआ। पुस्तक के चित्र निर्माण के लिए विशेषतः अग्रज नितिन की सदैव आभारी रहूँगी, यद्यपि मेरे समस्त कार्य भ्रातृसहयोग के बिना कदापि पूर्ण न हो सकते अतः उनको धन्यवाद ज्ञापित करती हूँ। अनुजा भानु को स्नेह के लिए आभार प्रकट करती हूँ। विशेष रूपसे माता जी श्रीमती ऊषा की मैं सदैव ऋणी रहूँगी और सदैव उनके स्नेह, सहयोग एवं उत्साह की कामना करती हूँ।

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