प्यारे बच्चों! यह हैं तो दो शब्द परन्तु जब एक शब्द में बहुत कुछ कहने की शक्ति होती है तो दो शब्द तो न जाने क्या क्या कहना चाहते हैं। यह पुस्तक विशेषतः मैंने उन बच्चों के लिए लिखी है जो अपने राष्ट्र से और संस्कृति से प्यार करते हैं तथा अपने राष्ट्र के प्राचीन साहित्य को जानना चाहते हैं। मुझे बहुत बार यह सुनने को मिला कि वेदों में प्राप्त साहित्य को कोई आम आदमी तक क्यों नहीं ले जाता? मैंने सोचा बात तो सही है क्योंकि जब तक वेदों के ज्ञान से लोग, विशेषकर बच्चे, परिचित नहीं होंगे तब तक वह उसके अन्दर छिपे ज्ञान के सागर का सम्मान कैसे करेंगे?
यही सब कथन मेरे मर्म को छू गया और मैंने सर्वप्रथम ऋग्वेद में से कुछ विशेष लेकर बच्चों के लिए प्रस्तुत किया है। अध्ययन की नीरसता को सरसता में बदलने के लिए तथा उक्त महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को स्मृति-पटल पर अङ्कित करने के लिए चित्रों का सहारा लिया गया है। सर्वप्रथम स्वरचित गणेश-प्रार्थना का एक श्लोक है क्योंकि हम भारतीय एक अद्वितीय शक्ति में विश्वास करते हैं तथा उससे प्रारम्भ किए जाने वाले कार्य की निर्विघ्न समाप्ति के लिए प्रार्थना करते हैं।
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