वेद के गम्भीर और सार्थक अध्ययन के लिए वेद के विभिन्न विषयों पर अलग-अलग ध्यान केन्द्रित करके चिन्तन-मनन करना आवश्यक है और जब यह कार्य अनेक विद्वानों द्वारा एक साथ बैठकर पारस्परिक विचार-विमर्श द्वारा हो तो वह अधिक फलप्रद होता है। इस प्रकार अलग-अलग विषयों के सभी नहीं तो भी अधिकांश पक्षों के विवेचन का अच्छा अवसर रहता है ।
देवता का ज्ञान वेद को समझने के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इसके महत्त्व को प्रतिपादित करने के लिए ही सम्भवतया यास्क ने निरुक्त का आधे से अधिक भाग केवल देवता-विवेचन को सर्मापत किया है। यदि देवता का स्वरूप और उसकी धारणा स्पष्ट हो जाती है तो मन्त्रों का अर्थ तदनुसार स्पष्ट होता जाता है। वस्तुतः देवता सूक्त अथवा मन्त्र का विषय होता है। परन्तु अनेक भाष्यकारों ने पुराणों के अनुकरण पर तथा कर्मकाण्ड की दृष्टि से शरीरधारी देवताओं की कल्पना करके मन्त्रों के काल्पनिक और असंगत तथा दूराकृष्ट अर्थ किए हैं। इसलिए मन्त्रों के ठीक अर्थ समझने के लिए देवता की वेदानुसारी भावना को जानना अत्यन्त आवश्यक है ।
यह बहुत सन्तोष का विषय है कि सीमित साधनों में भी वेद संस्थान (राजौरी गार्डन, नई दिल्ली) एक मात्र ऐसी संस्था है जो अपने उदारमना तथा वेद विद्या को सर्मापत अध्यक्ष डॉ० अभयदेव शर्मा की प्रेरणा से प्रतिवर्ष द्विदिवसीय वेद-संगोष्ठी का आयोजन करती है। इस संगोष्ठी की यह विशेषता है कि प्रति वर्ष चर्चा के लिए वेद-सम्बन्धी कोई देवता अथवा ऋषि-नाम निर्धारित किया जाता है और उसके विविध पक्षों पर विद्वान् अपने लिखित निबन्ध प्रस्तुत करते हैं। निबन्ध के प्रस्तुतीकरण के पश्चात् उस पर सजीव प्रश्नोत्तर होते हैं और विषय अधिक विशद हो जाता है।
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