वैदिक आख्यान उपनिषदों में आई बह्मविद्या विवेचन प्रधान कथाओं से पर्याप्त भिन्न हैं। इन आख्यानों में किसी प्रकार की यथार्थता या ऐतिहासिकता को तलाश करना ठीक नहीं है।
यह तो सत्य है कि पर्याप्त प्राचीन काल में भी वेद मन्त्रों में आये इस प्रकार के कथामूलक सन्दर्भों को इतिहास मानकर उनकी व्याख्या की गई थी, किन्तु निरुक्तकार यास्क ने यह स्पष्ट कर दिया था कि ये आख्यान वास्तविक न होकर शाश्वत तथ्यों को सुगम तथा सुग्राह्य बनाने के लिए ही कल्पित किये गये हैं।
जिस प्रकार पंचतंत्र तथा हितोपदेश में आई पशु-पक्षियों की कहानियां पाठकों तक नीतिमूलक उपदेशों को सुगमता पूर्वक पहुंचाती है उसी प्रकार ये वैदिक आख्यान भी अपने कथ्य को सुगम बनाने के लिए किसी कल्पित कथा का
आश्रय लेते हैं। आशा है, वेदों के तत्त्वार्थ को समझने में यह ग्रन्थ उपयोगी सिद्ध होगा।
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