वेद धर्म का विश्व कोष है। इसमें मनुष्य के सभी कर्तव्यकर्मों का समावेश है। वेद में जो कुछ कहा वही धर्म है, जो वेद के विरुद्ध है वही अधर्म है।
स्वामी दयानन्द ने वैदिक सिद्धान्तों को रेखांकित किया तथा वैदिक मान्यताओं का हमारे समक्ष रखा। इन्हीं मान्यताओं को लेखक ने सार रूप में इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है।
ईश्वर की सत्ता, ईश्वरोपासना विधि, अवतारवाद, मूत्तिपूजा से हानियाँ, आत्मा
की सत्ता व उसका स्वरूप, कर्मपफल सिद्धान्त, पुनर्जन्म, मोक्ष, त्रौतवाद का
सिद्धान्त, वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, मृतक श्राद्ध, अन्धविश्वास आदि पर
विवेचन प्रस्तुत है। हमें पूर्ण विश्वास है कि यह पुस्तक पाठकों को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करेगी और सच्चे व वास्तविक धर्म को जानने में सहायक सिद्ध होगी।
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