पुस्तक का नाम – वैदिक साहित्य एवं संस्कृति
लेखक – डा. कपिलदेव द्विवेदी
वेद भारतीय संस्कृति की आत्मा है। ये मानवजाति के लिए प्रकाश-स्तम्भ है। विश्व को संस्कृति देने का श्रेय वेदों को ही जाता है।
प्रस्तुत् ग्रन्थ प्रबुद्ध वेद-प्रेमियों को दृष्टि में रखकर लिखा गया है। इसका उद्देश्य है – संक्षेप में समग्र वैदिक वाङ्मय का दिग्दर्शन कराना, साथ ही सांस्कृतिक पक्ष को भी प्रस्तुत करना । इसके लिए सूत्र-शैली को अपनाया गया है। प्रयत्न किया गया है कि कोई उपयोगी तथ्य छूटने न पावे। यह भी प्रयत्न किया गया है कि नवीनतम अनुसंधानों को इसमें समाविष्ट किया जाये। भारतीय और पाश्चात्त्य वि्दवानों ने जो वैदिक वाङ्मय की सेवा की है उसका भी विस्तृत विवेचन किया है।
प्रस्तुत ग्रंथ १३ अध्यायों में विभक्त है। इसमें वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक, उपनिषद् और ६ वेदांगो का विस्तृत विवेचन किया गया है। प्रस्तावना में वेद सम्बन्धित विविध विषयों का आलोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। इसमें वेदों का महत्त्व, वेदों की विविध व्याख्या–पद्धतियाँ, वेदों की अपौरुषेयता आदि का विवेचन है।
प्रारम्भ के ६ अध्यायों में वेद, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद् और वेदांगो के विषय में सर्वांगीण विवेचन प्रस्तुत किया गया है। प्रत्येक वेद के विवेचन के अन्त में महत्त्वपूर्ण सूक्त, मंत्र और सूक्तियों का भी उल्लेख किया गया है।
अध्याय ७ और ८ में वैदिक–संस्कृति का स्वरूप प्रदर्शित किया गया है। इसमें भूगोल, सामाजिक जीवन, आर्थिक स्थिति और राजनीतिक अवस्था का परिचय दिया गया है।
अध्याय १० में वैदिक यज्ञ प्रक्रिया का महत्त्व दर्शाया गया है।
अध्याय १२ में वेदों के महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक सूत्रों को सम्मलित किया गया है।
अध्याय १३ में वेदों में विद्यमान काव्य सौन्दर्य के कुछ उदाहरण दिए गए है।
इस ग्रंथ में लेखक ने गागर में सागर भरने का कार्य किया है।
इस पुस्तक द्वारा पाठकगणों की अनेकों जिज्ञासाओं का समाधान सफलतापूर्वक होगा।
पुस्तक को vedrishi.com वेबसाईट से प्राप्त करें।
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