यह पुस्तक शास्त्रार्थ-युग की एक अनुपम देन है। एक मौलाना ने ‘इस्लामी बहिश्त विषयक महर्षि दयानंद की समीक्षा का उत्तर देने के स्थान पर कर्मफल-सिद्धांत, पुनर्जन्म आदि अन्य विषयों पर अनावश्यक, अप्रासांगिक विवाद छेड़ दिया।
श्री पंडित चमूपति जी ने मौलाना की सब बातों का सप्रमाण, युक्तियुक्त अतयन्त योग्यता से उत्तर इस पुस्तक में दिया है। यह पुस्तक मात्र एक विधर्मी के आक्षेपों का उत्तर ही नहीं है. इसमें धर्म व दर्शन के कई मूलभूत सिद्धांतों पर सहित्यायिक भाषा में बड़ी रोचक शैली में विचार किया गया है।
श्री पंडित चमूपति जी की इस पुस्तक में भाषा का ओज, प्रवाह, रस. चुटकियाँ, मीठा व्यंग, कवि की कल्पना, दार्शनिक चिंतन व मौलिकता सब-कुछ मिलेगा।
जो जिज्ञासु वैदिक धर्म व दर्शन का तलस्पर्शी अध्ययन करना चाहते हैं. यह पुस्तक उनके लिये मार्ग दर्शक का काम करेगी।
Reviews
There are no reviews yet.