पुस्तक का नाम – वैदिक विचारधारा का वैज्ञानिक आधार
लेखक – डॉ.सत्यव्रत सिद्धान्तालन्कार
आज का व्यक्ति आँख बंदकर किसी बात को मानने को तैयार नही हैं। वो हर बात को विज्ञान की कसौटी पर कसकर परखना चाहता हैं, क्योंकि खरे-खोटे का सर्वोत्कृष्ट आधार वो विज्ञान को मानता है। धर्म-सम्मत, शास्त्र-सम्मत तथा तर्क-सम्मत से अधिक वह आधुनिक विज्ञान-सम्मत होने में विश्वास करता है।
निस्संदेह, यह स्वस्थ दृष्टिकोण है, स्वस्थ परम्परा है, हालांकि स्वयम् विज्ञान भी यह दावे से नहीं कह सकता है कि उसकी उपलब्धियाँ चिर नूतन हैं या उसकी स्थापनाएँ अंतिम हैं, जो विज्ञान स्वयम् अभी कसौटी पर है वो दुसरों के लिए क्या कसौटी होगा? तथापि इस विचारधारा को भी सम्मान देना होगा कि कोई विचारधारा तब तक सर्वमान्य नहीं जब तक विज्ञान सम्मत न हो।
आज का युवा वर्ग खुले शब्दों में पूछता हैं कि ईश्वर है तो कहाँ है? वह दिखाई क्यों नहीं देता? वह आत्मा, पुनर्जन्म, कर्मफल आदि पर संदेह करता है। जब उसे इनका समाधान नहीं मिलता है तो वह इन सबको निरर्थक मानकर आक्रोश से भर जाता है। ऐसे युवाओं के लिए यह ग्रन्थ सचमुच आलोक स्तम्भ का कार्य करेगा और वैज्ञानिक सिद्धांत से आत्मा, परमात्मा, मन, चेतनता, पुनर्जन्म, जन्म, मृत्यु, सृष्टि रचना आदि रहस्यों की गुत्थी को सुलझा देगा।
आशा है पाठक इस भारतीय दर्शन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि “वैदिक विचारधारा का वैज्ञानिक आधार” का स्वागत करेंगे तथा जिज्ञासुओं के लिए यह वैदिक दर्शन का प्रवेशद्वार सिद्ध होगा।
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