वेदों के निर्माणकाल के सम्बन्ध में विद्वानों में परस्पर बहुत मतभेद है। इस विषय पर अनेक मत होने पर भी, इस बात पर सबको सहमति है, कि संसार की सब पुस्तकों में वेद प्राचीनतम हैं।
ऋगू, यजुः, साम तथा अथर्व भेद से वेद चार संहिताओं में विभक्त हैं। सब वेदों के अध्ययन से, मैं इस निश्चय पर पहुँचा हूँ, कि आयुर्वेद का विषय ऋगू और यजुः की अपेक्षा अथर्ववेद में बहुत विस्तृत रूप से मिलता है।
अथर्ववेद के, वैदिक ग्रन्थों में आठ इं नाम आते हैं। उनमें भेषज- वेद और यातु-वेद, यह दो नाम ही स्पष्ट करते हैं; कि अथर्ववेद में आयुर्वेद का विषय प्रचुर रूप से विद्यमान् है।
अथर्ववेद की ६ शाखायें हैं।
(१) पैप्पलादः (२) तौदाः (३) मौदाः (४) शौनकीयाः (५)
जाजलाः (६) जलदाः (७) ब्रह्मवदाः (८) देवदर्शाः (१) चारण वैद्या।
इन नौ में से इस समय पैप्पलाद और शौनकीय शाखाएँ उपलब्ध हैं, शेष सात लुप्त हो चुकी हैं। इन दो में भी शौनकीय शाखा का पठनपाठन’ में अधिक व्यवहार है। ‘वेदों में आयुर्वेद’ नामक ग्रन्थ में जो मन्त्र अथर्ववेद के नाम से उद्धत किए गए हैं, वे शौनकीय शाखा के हैं।
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