Vedrishi

विशुद्ध मनुस्मृति

Vishuddh Manusmriti

400.00

Subject: Smriti
Edition: 2019
Publishing Year: 2019
SKU #NULL
ISBN : 9788190000000
Packing: Hard Cover
Pages: 404
BindingHard Cover
Dimensions: 20X25X4
Weight: 1100gm
Share the book

स्मृतियों या धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति सर्वाधिक प्रामाणिक आर्ष ग्रन्थ है। मनुस्मृति का महत्त्व इसी से ज्ञात होता है कि इसे ऋषियों ने औषध कहा है – “मनुर्वै यत्किञ्च्चावदत् तद् भैषजम्” अर्थात् मनु ने जो कुछ कहा है, वह औषध के समान गुणकारी एवं लाभकारी है। शास्त्रकारों ने मनुस्मृति के महत्त्व को निर्विवाद रूप में स्वीकार करते हुए ही यह स्पष्ट घोषणा की है कि –
“मनुस्मृति-विरुद्धा या सा स्मृतिर्न प्रशस्यते। वेदार्थोपनिबद्धत्वात् प्राधान्यं हि मनोः स्मृतेः” – बृहस्पति स्मृति, संस्कार खंड 13-14
जो स्मृति मनुस्मृति के विरुद्ध है, वह प्रशंसा के योग्य नहीं है। वेदार्थों के अनुसार वर्णन होने के कारण मनुस्मृति ही सब में प्रधान एवं प्रशंसनीय है।
इस तरह दीर्घकाल से मनु का महत्त्व शिष्टजन स्वीकारते आ रहें हैं।

मनुस्मृति से न केवल वैदिक धर्मी प्रभावित थे अपितु बौद्ध मतावलम्बी भी प्रभावित थे। इसका एक उदाहरण उन्हीं के ग्रन्थ धम्मपद से देखिए –
“अभिवादनसीलस्य निच्चं बुढ्ढापचायिनो।
चत्तारो धम्मा वड्ढन्ति आयु विद्दो यसो बलम्”।।- धम्मपद 8.20
धम्मपद का ये श्लोक मनुस्मृति के निम्न श्लोक का पाली रूपान्तरण मात्र है –
“अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते, आयुर्विद्या यशो बलम्”।। – मनुस्मृति 2.121
बोद्ध महाकवि अश्वघोष ने भी अपनी कृति वज्रसूचिकोपनिषद् मे अनेक मनु के वचनों को उद्धृत किया है।

इस तरह मनुस्मृति का व्यापक प्रचार दृष्टिगोचर होता है लेकिन विगत कुछ वर्षों से मनुस्मृति का विरोध शुरू हो गया है। इसके निम्न कारण है –
– मनु में शुद्र विरोधी श्लोकों का पाया जाना।
– मनु में स्त्री विरोधी श्लोकों का पाया जाना।
– कुछ अवैज्ञानिक और अवांछनीय तथ्यों का मनुस्मृति में प्राप्त होना।

ये सब मनुस्मृति में उत्तरोत्तर काल में हुए प्रक्षेपों का परिणाम है। मनुस्मृति में कौनसा श्लोक प्रक्षिप्त है और कौनसा सही, ये ज्ञात करने के लिए ऐसे अनुसंधात्मक कार्य की आवश्यकता है जो सकारण प्रक्षिप्त श्लोंकों का तार्किक विवरण प्रस्तुत कर सकें और मनुस्मृति के शुद्ध और वास्तविक स्वरूप का दिग्दर्शन करवा सकें।
इस विषय में डॉ.सुरेन्द्र कुमार जी ने मनुस्मृति पर अनुसंधान करते हुए, अनेक वर्षों के श्रम के पश्चात् मनुस्मृति का प्रस्तुत् भाष्य प्रकाशित किया है। प्रस्तुत् भाष्य में मनुस्मृति के प्रक्षिप्त श्लोंकों का निर्धारण निम्न मानदण्डों के आधार पर किया है –
(1) अन्तर्विरोध या परस्परविरोध (2) प्रसंगविरोध (3) विषयविरोध या प्रकरणविरोध (4) अवान्तरविरोध (5) शैलीविरोध (6) पुनरुक्ति (7) वेदविरोध।
इन मानदण्डों के आधार पर प्रक्षिप्त श्लोक निर्धारित किए है।

इस भाष्य के अध्ययन द्वारा निम्न तथ्य पाठकों को दृष्टिगोचर होंगे –
(1) मनुस्मृति स्वायम्भुव मनु रचित आदिसृष्टि काल की रचना है।
(2) मनुस्मृति में वर्णव्यवस्था कर्मणा मान्य है, जन्मना नही।
(3) मनुस्मृति में मांसभक्षण पाप है।
(4) मनुस्मृति में स्त्रियों के सम्मान का कथन है, उनकों दुःख देना कुटुम्ब के विनाश का मूल कारण है।
(5) मनुस्मृति दहेज प्रथा का स्पष्ट विरोध करती है।
(6) मनुस्मृति पंचमहायज्ञों को महत्त्व देती है और उनका कर्तव्यकर्म के रूप में विधान करती है।
(7) शुद्रों के लिए दासता का विधान मनुकृत नही है।
(8) शुद्र और स्त्री दोनों को धर्मपालन का अधिकार है।
इस प्रकार अनेकों तथ्य इस भाष्य के अध्ययन से दृष्टिगोचर होंगे।

प्रस्तुत भाष्य की विशेषताएँ –
– इस भाष्य में मौलिक सिद्ध हुए श्लोकों को ग्रहण करके प्रक्षिप्त श्लोकों से रहित मनुस्मृति का ‘विशुद्ध मनुस्मृति’ के नाम से प्रकाशित किया है।
– सभी प्रक्षिप्त सिद्ध श्लोकों को पृथक् कर दिया है।
– इसमें पाठकों को मनु के उपदेशों को अविरल रूप में पढ़ने का आनन्द प्राप्त होगा।
– जिस श्लोक का अनुवाद महर्षि दयानन्द जी द्वारा किया गया है उसे प्रस्तुत भाष्य में तत्तत्श्लोक के साथ संकलित किया गया है।
– संस्कृत पदों के साथ हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत किया है।
– मनु के वचनों से मनु के भावों को स्पष्ट किया है।
– प्रस्तुत भाष्य में मनु की मान्यता के अनुकूल एवं प्रसंगसम्मत अर्थ किए गये है।
– विस्तृत भूमिका द्वारा मनुस्मृति का पुनर्मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है।
– विशुद्ध मनुस्मृति के सभी श्लोकों की अन्त में अनुक्रमणिका बना कर प्रस्तुत की गई है।

मनु के वास्तविक सिद्धान्तों और भावों को समझने के लिए, प्रस्तुत भाष्य “विशुद्ध-मनुस्मृति” को मंगवाकर अवश्य अध्ययन करें। इससे मनुस्मृति विषयक भ्रमों का नाश तो होगा ही तथा साथ ही ये ग्रन्थ शोधार्थियों और जिज्ञासुओं के लिए भी लाभकारी होगा। प्रस्तुत भाष्य हिन्दी में होने के कारण, इससे हिन्दी भाषायी नागरिक भी लाभान्वित होंगे।

 

 

 

 

 

स्वाध्याय के लिए मनुस्मृति का प्रक्षेप रहित संस्करण –
विशुद्ध मनुस्मृति – डा. सुरेन्द्र कुमार

1. निर्धारित मानदण्डों के आधार पर प्रक्षिप्त सिद्ध हुए श्लोकों से रहित मौलिक श्लोकों का संस्करण।
2. मनु के मौलिक आदेशों-उपदेशों का प्रसंगबद्ध वर्णन होने से स्वाध्यायशील व्यक्तियों के लिए परम-उपयोगी। प्रमुख प्रकरणों का उल्लेख।
3. पदार्थ टीका एवं मनुप्रसंग सम्मत अर्थ।
4. विशिष्ट व विवादास्पद स्थलों पर शास्त्र प्रमाणों एवं अन्तःसाक्ष्य सहित अनुशीलन समीक्षा।
5. महर्षि दयानन्द कृत अर्थ एवं भावार्थ सहित।
6. विस्तृत भूमिका तथा उसमें मनुस्मृति का नया मूल्यांकन।
7. विषय-सूची, उभयपंक्ति श्लोकानुक्रमणिका सहित।
8. कपड़े की बहुत बढ़िया जिल्द, बढ़िया कागज।
9. मूल्य लागत मात्र।

 

 

स्मृतियों या धर्मशास्त्रों में मनुस्मृति सर्वाधिक प्रामाणिक आर्ष ग्रन्थ है। मनुस्मृति का महत्त्व इसी से ज्ञात होता है कि इसे ऋषियों ने औषध कहा है – “मनुर्वै यत्किञ्च्चावदत् तद् भैषजम्” अर्थात् मनु ने जो कुछ कहा है, वह औषध के समान गुणकारी एवं लाभकारी है। शास्त्रकारों ने मनुस्मृति के महत्त्व को निर्विवाद रूप में स्वीकार करते हुए ही यह स्पष्ट घोषणा की है कि –
“मनुस्मृति-विरुद्धा या सा स्मृतिर्न प्रशस्यते। वेदार्थोपनिबद्धत्वात् प्राधान्यं हि मनोः स्मृतेः” – बृहस्पति स्मृति, संस्कार खंड 13-14
जो स्मृति मनुस्मृति के विरुद्ध है, वह प्रशंसा के योग्य नहीं है। वेदार्थों के अनुसार वर्णन होने के कारण मनुस्मृति ही सब में प्रधान एवं प्रशंसनीय है।
इस तरह दीर्घकाल से मनु का महत्त्व शिष्टजन स्वीकारते आ रहें हैं।

मनुस्मृति से न केवल वैदिक धर्मी प्रभावित थे अपितु बौद्ध मतावलम्बी भी प्रभावित थे। इसका एक उदाहरण उन्हीं के ग्रन्थ धम्मपद से देखिए –
“अभिवादनसीलस्य निच्चं बुढ्ढापचायिनो।
चत्तारो धम्मा वड्ढन्ति आयु विद्दो यसो बलम्”।।- धम्मपद 8.20
धम्मपद का ये श्लोक मनुस्मृति के निम्न श्लोक का पाली रूपान्तरण मात्र है –
“अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते, आयुर्विद्या यशो बलम्”।। – मनुस्मृति 2.121
बोद्ध महाकवि अश्वघोष ने भी अपनी कृति वज्रसूचिकोपनिषद् मे अनेक मनु के वचनों को उद्धृत किया है।

इस तरह मनुस्मृति का व्यापक प्रचार दृष्टिगोचर होता है लेकिन विगत कुछ वर्षों से मनुस्मृति का विरोध शुरू हो गया है। इसके निम्न कारण है –
– मनु में शुद्र विरोधी श्लोकों का पाया जाना।
– मनु में स्त्री विरोधी श्लोकों का पाया जाना।
– कुछ अवैज्ञानिक और अवांछनीय तथ्यों का मनुस्मृति में प्राप्त होना।

ये सब मनुस्मृति में उत्तरोत्तर काल में हुए प्रक्षेपों का परिणाम है। मनुस्मृति में कौनसा श्लोक प्रक्षिप्त है और कौनसा सही, ये ज्ञात करने के लिए ऐसे अनुसंधात्मक कार्य की आवश्यकता है जो सकारण प्रक्षिप्त श्लोंकों का तार्किक विवरण प्रस्तुत कर सकें और मनुस्मृति के शुद्ध और वास्तविक स्वरूप का दिग्दर्शन करवा सकें।
इस विषय में डॉ.सुरेन्द्र कुमार जी ने मनुस्मृति पर अनुसंधान करते हुए, अनेक वर्षों के श्रम के पश्चात् मनुस्मृति का प्रस्तुत् भाष्य प्रकाशित किया है। प्रस्तुत् भाष्य में मनुस्मृति के प्रक्षिप्त श्लोंकों का निर्धारण निम्न मानदण्डों के आधार पर किया है –
(1) अन्तर्विरोध या परस्परविरोध (2) प्रसंगविरोध (3) विषयविरोध या प्रकरणविरोध (4) अवान्तरविरोध (5) शैलीविरोध (6) पुनरुक्ति (7) वेदविरोध।
इन मानदण्डों के आधार पर प्रक्षिप्त श्लोक निर्धारित किए है।

इस भाष्य के अध्ययन द्वारा निम्न तथ्य पाठकों को दृष्टिगोचर होंगे –
(1) मनुस्मृति स्वायम्भुव मनु रचित आदिसृष्टि काल की रचना है।
(2) मनुस्मृति में वर्णव्यवस्था कर्मणा मान्य है, जन्मना नही।
(3) मनुस्मृति में मांसभक्षण पाप है।
(4) मनुस्मृति में स्त्रियों के सम्मान का कथन है, उनकों दुःख देना कुटुम्ब के विनाश का मूल कारण है।
(5) मनुस्मृति दहेज प्रथा का स्पष्ट विरोध करती है।
(6) मनुस्मृति पंचमहायज्ञों को महत्त्व देती है और उनका कर्तव्यकर्म के रूप में विधान करती है।
(7) शुद्रों के लिए दासता का विधान मनुकृत नही है।
(8) शुद्र और स्त्री दोनों को धर्मपालन का अधिकार है।
इस प्रकार अनेकों तथ्य इस भाष्य के अध्ययन से दृष्टिगोचर होंगे।

प्रस्तुत भाष्य की विशेषताएँ –
– इस भाष्य में मौलिक सिद्ध हुए श्लोकों को ग्रहण करके प्रक्षिप्त श्लोकों से रहित मनुस्मृति का ‘विशुद्ध मनुस्मृति’ के नाम से प्रकाशित किया है।
– सभी प्रक्षिप्त सिद्ध श्लोकों को पृथक् कर दिया है।
– इसमें पाठकों को मनु के उपदेशों को अविरल रूप में पढ़ने का आनन्द प्राप्त होगा।
– जिस श्लोक का अनुवाद महर्षि दयानन्द जी द्वारा किया गया है उसे प्रस्तुत भाष्य में तत्तत्श्लोक के साथ संकलित किया गया है।
– संस्कृत पदों के साथ हिन्दी अनुवाद भी प्रस्तुत किया है।
– मनु के वचनों से मनु के भावों को स्पष्ट किया है।
– प्रस्तुत भाष्य में मनु की मान्यता के अनुकूल एवं प्रसंगसम्मत अर्थ किए गये है।
– विस्तृत भूमिका द्वारा मनुस्मृति का पुनर्मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है।
– विशुद्ध मनुस्मृति के सभी श्लोकों की अन्त में अनुक्रमणिका बना कर प्रस्तुत की गई है।

मनु के वास्तविक सिद्धान्तों और भावों को समझने के लिए, प्रस्तुत भाष्य “विशुद्ध-मनुस्मृति” को मंगवाकर अवश्य अध्ययन करें। इससे मनुस्मृति विषयक भ्रमों का नाश तो होगा ही तथा साथ ही ये ग्रन्थ शोधार्थियों और जिज्ञासुओं के लिए भी लाभकारी होगा। प्रस्तुत भाष्य हिन्दी में होने के कारण, इससे हिन्दी भाषायी नागरिक भी लाभान्वित होंगे।

 

 

 

 

 

स्वाध्याय के लिए मनुस्मृति का प्रक्षेप रहित संस्करण –
विशुद्ध मनुस्मृति – डा. सुरेन्द्र कुमार

1. निर्धारित मानदण्डों के आधार पर प्रक्षिप्त सिद्ध हुए श्लोकों से रहित मौलिक श्लोकों का संस्करण।
2. मनु के मौलिक आदेशों-उपदेशों का प्रसंगबद्ध वर्णन होने से स्वाध्यायशील व्यक्तियों के लिए परम-उपयोगी। प्रमुख प्रकरणों का उल्लेख।
3. पदार्थ टीका एवं मनुप्रसंग सम्मत अर्थ।
4. विशिष्ट व विवादास्पद स्थलों पर शास्त्र प्रमाणों एवं अन्तःसाक्ष्य सहित अनुशीलन समीक्षा।
5. महर्षि दयानन्द कृत अर्थ एवं भावार्थ सहित।
6. विस्तृत भूमिका तथा उसमें मनुस्मृति का नया मूल्यांकन।
7. विषय-सूची, उभयपंक्ति श्लोकानुक्रमणिका सहित।
8. कपड़े की बहुत बढ़िया जिल्द, बढ़िया कागज।
9. मूल्य लागत मात्र।

Weight1100 g

Reviews

There are no reviews yet.

You're viewing: Vishuddh Manusmriti 400.00
Add to cart
Register

A link to set a new password will be sent to your email address.

Your personal data will be used to support your experience throughout this website, to manage access to your account, and for other purposes described in our privacy policy.

Lost Password

Lost your password? Please enter your username or email address. You will receive a link to create a new password via email.

Close
Close
Shopping cart
Close
Wishlist