पुस्तक समीक्षा- विश्व सभ्यताओं का जनक : भारत (एक शोध ग्रंथ)
विश्व सभ्यताओं का जनक :भारत (एक शोध ग्रंथ) डॉक्टर अखिलेश चंद्र शर्मा जी द्वारा लिखित यह पुस्तक भारत के गर्व और गौरव को परिभाषित, स्थापित और व्याख्यायित करने वाला महान शोध ग्रंथ है। पुस्तक की प्रत्येक पंक्ति से लेखक की देशभक्ति, वेद भक्ति और प्रभु भक्ति की झलक दिखाई देती है। वास्तव में किसी भी लेखक के भीतर जब भक्ति की यह त्रिवेणी बहने लगती है और वह उस त्रिवेणी में स्नान कर पवित्र हो जाता है तो उसके तीन ही स्वरूप समाज के सामने होते हैं – सर्वप्रथम वह हमारे सामने एक राष्ट्रवादी चिंतक के रूप में आता है , दूसरे वह लेखन के अनर्गल प्रलाप और वाणी विलाप से बचता है अर्थात उसका खान-पान, आहार-विहार ,चाल-चलन सब राष्ट्रमय हो जाता है। तीसरे, वह राष्ट्र के वर्तमान को सुंदर बनाकर भविष्य की उज्ज्वलता के प्रति अपने आप को समर्पित कर देता है।
ऐसा तेजस्वी तप:पूत एक साधक, उपासक और आराधक से कम नहीं होता। उसकी साधना, उसकी उपासना और आराधना में राष्ट्र बोलता है। राष्ट्र धड़कता है। उसका त्याग, उसका तप, उसकी सेवा, उसका समर्पण सब कुछ राष्ट्रमय हो जाता है। साधना की इसी अवस्था में जाकर किसी लेखक से कोई शोध ग्रंथ तैयार होता है । जो उसके राष्ट्र के लिए बहुत उपयोगी होता है। ऐसे में निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि श्री शर्मा का यह शोध ग्रंथ उनकी साधना की ऊंचाई और पवित्रता को प्रकट करता है।
डॉक्टर अखिलेश चंद्र शर्मा जी एक प्रखर राष्ट्रवादी चिंतनशील व्यक्तित्व के स्वामी हैं। जिन्होंने अपनी प्रतिभा का उत्कृष्ट प्रदर्शन और सदुपयोग करते हुए यह पुस्तक शोध ग्रंथ के रूप में लिखी है।
कुछ लोग पुस्तकों के अध्ययन के उपरांत अक्सर यह कह दिया करते हैं कि जो कुछ विषय इस पुस्तक में दिया गया है वह सब तो पहले से ही उपलब्ध था। अतः कोई विशेष पुरुषार्थ या उद्यम इस पुस्तक के लेखन के माध्यम से लेखक ने नहीं किया है? ऐसे लोग चाहे बेशक किसी लेखक के पुरुषार्थ और परिश्रम को कम करके आंक लेते हों, परंतु उनको यह भी पता होना चाहिए कि एक रसोई में वे सारी चीजें उपलब्ध हो सकती हैं जो 10 आदमियों के लिए भोजन तैयार कराने में सहायक हो परंतु यह अलग-अलग हर गृहिणी पर निर्भर करता है कि वह कैसा भोजन बना दे ? कोई गृहिणी ऐसी भी हो सकती है जो उस सामग्री से ऐसा भोजन तैयार करे जिसे कोई खाने को भी तैयार ना हो तो कोई ऐसी भी हो सकती है जिसके बनाये भोजन से लोग उंगली चाटते रह जाएं।
कहने का अभिप्राय है कि तथ्यों के उपलब्ध होने के उपरांत भी उनकी प्रस्तुति उत्कृष्ट या निकृष्ट करना लेखक की अपनी शैली पर निर्भर होता है। किसी की प्रस्तुति बहुत खराब हो सकती है तो किसी की प्रस्तुति बहुत उत्कृष्ट हो सकती है। डॉक्टर अखिलेश चंद्र शर्मा जी की इस पुस्तक में उनकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का बोध हर पृष्ठ पर होता है। उन्होंने तथ्यों को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है और भारत के गौरवशाली अतीत का उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए अपनी प्रतिभा को भी हम सबके समक्ष उंडेलकर रख दिया है। जिसे देखकर हर व्यक्ति उनकी प्रतिभा की प्रशंसा किए बिना रह नहीं सकता।
हमारे देश भारत की तो प्राचीन काल से यह परंपरा रही है कि प्रतिभा का सम्मान किया ही जाना चाहिए। क्योंकि जहां अपात्रों का, नालायकों का ,अयोग्यों का सम्मान होता है वहाँ दुर्भिक्ष, मरण और भय होते हैं। अतः किसी की भी प्रतिभा की मुक्त कंठ से प्रशंसा होनी चाहिए ।जिससे कि प्रतिभाओं का विकास क्रम बाधित ना हो। अतः श्री शर्मा सरस्वती के सुपुत्र होने के नाते प्रशंसा के पात्र हैं।
पुस्तक में विद्वान लेखक ने पृथ्वी पर प्रथम मनुष्य उत्पत्ति स्थान, वेद ज्ञान का प्रकाश, मनुष्य सृष्टि का आरंभ, वैदिक ग्रंथों में वर्ण व्यवस्था आदि को बहुत उत्तम ढंग से प्रस्तुत किया है।इसके अतिरिक्त उन्होंने 17 प्राचीनतम सभ्यताओं का वर्णन करके भी पुस्तक को ज्ञान का स्रोत बनाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है।
पुस्तक के अध्ययन से यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि विश्व सभ्यताओं का जनक भारत ही रहा है । विद्वान लेखक ने अमेरिका खंड, अफ्रीका, मिस्र देश , मेसोपोटामिया, यूनान प्रदेश, यूरोप खंड , अरब प्रायद्वीप, ईरान देश, मोहनजोदड़ो हड़प्पा सभ्यता, चीन , मंगोलिया, जापान, बर्मा, श्याम देश या थाईलैंड ,कंबोडिया, चंपा या वियतनाम, मलेशिया आदि के बारे में ऐसी सामग्री उपलब्ध कराई है जिससे पता चलता है कि इन सबका पूर्वज भारत ही है।
पुस्तक में अनेकों ऐसे रंगीन चित्र दिए गए हैं जो भारत की वैदिक सभ्यता और संस्कृति का गौरवमयी बोध कराने में सहायक होते हैं। लेखक ने शुद्ध वैदिक दृष्टिकोण को अपनाकर पुस्तक को किसी भी प्रकार के पाखंड और अंधविश्वास से मुक्त रखने का भी सराहनीय प्रयास किया है। भारतीय वैदिक परंपरा के ऋषियों के वक्तव्य, कथन और उद्धरण प्रस्तुत कर पुस्तक को और भी अधिक सारगर्भित बनाने का सराहनीय प्रयास किया गया है। जिससे पुस्तक वैज्ञानिक भारत के महान ऋषि पूर्वजों के दृष्टिकोण को प्रकट करने वाली बन गयी है।
पुस्तक के अंत में वेद के संगठन सूक्त को देकर विद्वान लेखक ने जहां वैदिक संस्कृति के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट की है वहीं कलह और क्लेश की आग में झुलसते संसार को यह संदेश भी दिया है कि यदि वह वास्तव में शांति चाहता है तो उसे वेद के संगठन सूक्त की शरण में जाना ही होगा । वेद के संगठन सूक्त के निर्देश, उपदेश, संदेश और आदेश को ग्रहण कर यदि हम आगे बढेंगे तो निश्चित रूप से हम संसार को दिव्य और भव्य बनाने में सफल हो सकेंगे।
पुस्तक की भाषा शैली बहुत ही सरल है। यद्यपि अनेकों संस्कृत श्लोको मंत्रों आदि को लेखक ने प्रमाण स्वरूप प्रस्तुत किया है परंतु उनकी व्याख्या बहुत ही सरल शब्दों में करके पाठक के हृदय में उन्हें सहज रूप में उतारने में वे सफल होते हुए दिखाई देते हैं।
कुल मिलाकर इस शोध ग्रंथ के लिए डॉक्टर अखिलेश चंद्र शर्मा जी का पुरुषार्थ अभिनंदनीय है। उनका व्यक्तित्व वंदनीय है । कृतित्व नमनीय है।
पुस्तक प्राच्य विद्या शोध प्रकाशन से प्रकाशित हुई है।
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