इस स्मृति में 1003 श्लोक हैं। इसपर विश्वरूपकृत ‘बालक्रीड़ा’ (800-825), अपरार्क कृत याज्ञवल्कीय धर्मशास्त्र निबंध (12वीं शती) और विज्ञानेश्वरकृत मिताक्षरा (1070-1100) टीकाएँ प्रसिद्ध हैं। कारणे का मत है कि इसकी रचना लगभग विक्रम पूर्व पहली शती से लेकर तीसरी शती के बीच में हुई। स्मृति के अंत:साक्ष्य इसमें प्रमाण है। इस स्मृति का संबंध शुक्ल यजुर्वेद की परंपरा से ही था। जिस तरह मानव धर्मशास्त्र की रचना प्राचीन धर्मसूत्र युग की सामग्री से हुई, ऐसे ही याज्ञवल्क्य स्मृति में भी प्राचीन सामग्री का उपयोग करते हुए नयी सामग्री को भी स्थान दिया गया। कौटिल्य अर्थशास्त्र की सामग्री से भी याज्ञवल्क्य के अर्थशास्त्र का विशेष साम्य पाया जाता है।
याज्ञवल्क्य स्मृति में तीन कांड (अध्याय) हैं-
- (१) आचारकाण्ड – इसमें तेरह प्रकरण हैं।
उपोद्घात-प्रकरणं, ब्रह्मचारिप्रकरणं, विवाह-प्रकरणं, वर्णजातिविवेक-प्रकरणं, गृहस्थ-प्रकरणम्, स्नातवह-प्रकरणम्, भक्ष्याभक्ष्य-प्रकरणम्, द्रव्यशुद्धि प्रकरणम्, दान-प्रकरणम्, श्राद्ध्-प्रकरणम्, गणपति कल्पप्रकरणम्, ग्रहशान्ति-प्रकरणम्, राजधर्म-प्रकरणम्
- (२) व्यवहारकाण्ड – इसमें पचीस प्रकरण हैं।
व्यवहाराध्याये साधाराव्यवहारमातृका, ऋणादानो-पनिधि-साक्षी-लेख्य-दिव्य-दायविभाग-सीमाविवाद-स्वामिपालविवाद-अस्वामिविक्रय-दत्ताप्रदानिक क्रीतानुशया-अभ्युपेत्याशुश्रूषा-संविदव्यतिक्रम्-वेतनादानद्यूत समाह्वय -वाक् पारुष्य-दण्डपारुष्य-साहसविक्रीयासम्प्रदानसम्भूय समुत्थान-स्तेय-स्त्रीसंग्रहण-प्रकरण
- (३) प्रायश्चितकाण्ड – इसमें छः प्रकरण हैं।
शौचप्रकरणम्, आपद्धर्मप्रकरणम्, वानप्रस्थप्रकरणम्, यति-धर्मप्रकरणम्, प्रायश्चित्त-प्रकरणम्, प्रकीर्ण-प्रयश्चित्तानि
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