योगासन और प्राणायाम योग का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। यह भारत देश के ऋषि-मुनियों की अनमोल देन है। हमारे प्राचीन ऋषियों, मुनियों और योगियों ने, जो अपने समय के वैज्ञानिक थे, जो कुछ खोजा, हजारों लाखों वर्ष तक जांचा परखा। उन्होंने सूक्ष्म दृष्टि से प्रत्येक प्राणी का चाल-चलन और उनके व्यवहार देखे, तदनुसार जीने के निर्देश दिये। उनमें से जो चीजें (बातें) मानव-जीवन के लिए उपयोगी एवं लाभप्रद लगती थी, उसको वे निःसंकोच स्वीकार करते थे और जीवन में उतारने का प्रयास करते थे। यही उनकी उन्नति का मूल मन्त्र था। योगासन और प्राणायाम की उत्पत्ति भी उनके प्रयोग और अनुभव की देन है। जो आज भी मानव जाति का उपकार कर रही है। इसके सम्बन्ध में कुछ अधिक कहना आवश्यक नहीं है क्योंकि योगासन और प्राणायाम भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी अपनी अमिट पहचान बना चुकी है और लगातार विस्तार रूप पा रही है। इसकी महत्ता को देखते हुए ही माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रयास से संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्ताव रखा गया तथा अधिकांश सदस्य देशों के समर्थन से संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रतिवर्ष 21 जून को अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने का निर्णय लिया।
आज का मानव भौतिक साधनों को जुटाने में इतना व्यस्त हो गया है कि स्वयं को भूल गया है। उसे यह नहीं पता है कि जिस सुख साधनों को मैं जुटा रहा हूँ, क्या उसका मैं सुख भोग पाऊँगा। सुख भोगने के लिए स्वस्थ शरीर का होना आवश्यक है।
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