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योगदर्शनम्

Yogdarshanam

325.00

SKU 36580-VG00-0H Category puneet.trehan
Subject : Darshan Shastra
Edition : 2021
Publishing Year : 2021
SKU # : 36580-VG00-0H
ISBN : 9788170771555
Packing : Hardcover
Pages : 450
Dimensions : 14cms × 22cms
Weight : 620
Binding : Hard Cover
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ग्रन्थ का नाम – योगदर्शन

भाष्यकार – आचार्य उदयवीर जी शास्त्री

योगदर्शन महर्षि पतञ्जलि की रचना है। इस ग्रन्थ के चार पाद हैं। सूत्रों की संख्या 194 है।

योग शब्द के अनेक अर्थ हैं। युजिर् योगे से योग का अर्थ होगा मिलाने वाला अर्थात् जिसके द्वारा आत्मा को परमात्मा का ज्ञान मिल जाए या परमानन्द प्राप्त हो, उसे योग कहते हैं। योग शब्द युज् समाधौ से भी सिद्ध होता है जिसका अर्थ कि केवल ध्येय अर्थात् परमात्मा का ही भान हो।

जिस प्रकार से चिकित्सा शास्त्र में चार व्यूह हैं जैसे – रोग, रोग हैतु, आरोग्य और औषध। इसी प्रकार से योग शास्त्र के भी चार व्यूह है – संसार, संसार हैतु, मोक्ष, मोक्षोपाय। इस दर्शन में क्लेशों से मुक्ति पाने और चित्त को समाहित करने के लिए, योग के आठ अङ्गों के अभ्यास का प्रतिपादन किया गया है जो निम्न प्रकार है –

१. यम – यह पाँच माने गये हैं – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह।

२. नियम – यह भी पाँच हैं – शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वरप्रणिधान।

३. आसन – स्थिरता और सुखपूर्वक एक ही स्थिति में बहुत देर तक बैठने का नाम आसन है।

४. प्राणायाम – श्वास और प्रश्वास की गति के विच्छेद का नाम प्राणायाम है।

५. प्रत्याहार – इन्द्रियों को रुप, रस आदि अपने-अपने विषयों से हटाकर अन्तर्मुखी करने का नाम प्रत्याहार है।

६. धारणा – चित्त को शरीर में किसी देश विशेष में स्थिर कर देना धारणा है।

७. ध्यान – विचारों का किसी ध्येय वस्तु में तेलधारावत् एक प्रवाह में संलग्न होना ध्यान है।

८. समाधि – जब ध्यान ही ध्येय के आकार में भासित हो और अपने स्वरुप को छोड़ दे वही समाधि है।

योग के इस प्रकृत स्वरुप को जानने और योगविद्या के सूक्ष्मतत्वों को समझने के लिए योगदर्शन का आद्योपान्त अनुशीलन आवश्यक है और इसके लिये योगसूत्रों का ऐसा भाष्य अपेक्षित है जो विवेचनात्मक होने के साथ-साथ योग रहस्यों को सुन्दर, सरल भाषा में उपस्थित कर सके। प्रस्तुत भाष्य आचार्य उदयवीर जी शास्त्री द्वारा रचित है। यह भाष्य आचार्य जी के दीर्घकालीन चिन्तन-मनन का परिणाम है। इस भाष्य के माध्यम से उन्होने योगसूत्रों के सैद्धान्तिक एवं प्रयोगात्मक पक्ष को प्रकाशित किया है। मूलसूत्रों में आये पदों को उनके सन्दर्भगत अर्थों में ढालकर की गई यह व्याख्या योगविद्या के क्षेत्र में अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी। इस भाष्य के अध्ययन से अनेक सूत्रों के गूढार्थ को जानकर योग जैसे क्लिष्ट विषय को आसानी से समझा जा सकता है।

उपासना विधि तथा अनुभूत प्रयोग एवं अनुष्ठान का उल्लेख होने से सामान्यतः दर्शनशास्त्र में रुचि रखने वाले और योगमार्ग पर चलने वाले जिज्ञासुओं के लिए, यह भाष्य अतीव उपयोगी है।

Weight 620 g

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